पगडण्डियों ने फुसफुसाकर कहा
मुसाफ़िर
अपनी थकान सौंप दो
बारिश में भींगने वाली चिड़िया की तरह
तरोताज़ा होकर
आगे बढ़ो
अमराई ने कहा
हृदय में भर लो
गंध-मिठास-नशा
बुरे वक़्त में
जीने के लिए
इनकी ज़रूरत पड़ेगी
फ़सल ने कहा
ग़ौर से देखो मुझे
मेरे ही प्यार में
जलता है धरती का जीवन
मैं ही हूँ
तुम्हारी कविता में
मेरे लिए ही
इतना हाहाकार
इतने सारे समझौते
इतने सारे युद्ध
मैंने गहरी साँस लेकर
जीवन से कहा--
थका भी नहीं हूँ
टूटा भी नहीं हूँ
सिर्फ़ कड़वाहट बढ़ गई है
चिड़चिड़ापन बढ़ गया है
तनाव से शिराएँ फूलने लगी हैं
मगर
एक विश्वास कायम है कि
तस्वीर बदलेगी
धुन्ध छँटेगी