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धरती हँसेगी / दिनकर कुमार
Kavita Kosh से
पगडण्डियों ने फुसफुसाकर कहा
मुसाफ़िर
अपनी थकान सौंप दो
बारिश में भींगने वाली चिड़िया की तरह
तरोताज़ा होकर
आगे बढ़ो
अमराई ने कहा
हृदय में भर लो
गंध-मिठास-नशा
बुरे वक़्त में
जीने के लिए
इनकी ज़रूरत पड़ेगी
फ़सल ने कहा
ग़ौर से देखो मुझे
मेरे ही प्यार में
जलता है धरती का जीवन
मैं ही हूँ
तुम्हारी कविता में
मेरे लिए ही
इतना हाहाकार
इतने सारे समझौते
इतने सारे युद्ध
मैंने गहरी साँस लेकर
जीवन से कहा--
थका भी नहीं हूँ
टूटा भी नहीं हूँ
सिर्फ़ कड़वाहट बढ़ गई है
चिड़चिड़ापन बढ़ गया है
तनाव से शिराएँ फूलने लगी हैं
मगर
एक विश्वास कायम है कि
तस्वीर बदलेगी
धुन्ध छँटेगी
धरती हँसेगी ।