Last modified on 27 अप्रैल 2013, at 08:39

ख़्वाब / पवन कुमार

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:39, 27 अप्रैल 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ख़्वाब शीशे के टुकड़े हैं
टूटते हैं तो
पलकें लहूलुहान हो जाती हैं
मैं इस डर से कभी
आँखों में ख़्वाब
नहीं
सजाता हूँ।