मधुर कोकिल शब्द सुना रही।
पवन आ मलयाचल से रहा।
विरह में यह भी दुख दे रहे।
विपति के दिन में सुख दु:ख हो।
(भर्तृहरि के एक श्लोक की छाया)
हे हे चातक सावधान मन से बातें हमारी सुनो।
आवैं बादल जो अनेक नभ में होवैं न सो एक से ।।
कोई तो जलदान देत जग तो कोई वृथा गर्जते।
प्यारे हाथ पसार आप सबसे भिक्षाँ न माँगा करैं ।।
(भर्तृहरि)
हा धैर्य! धैर्य!! हे हृदय धैर्य धरि लीजै।
करिके जल्दी शुभ काज नाश नहिं कीजै ।।
जग में जिन जिन ने महत्वकार्य कीन्हें हैं।
सबने धैर्य हि हिय में आसन दीन्हें हैं ।।
उठिए! उठिए!! अब कर्मवीर बनना हैं।
होवे कोई प्रतिकूल, नहीं डरना हैं ।।
जब तक हैं तन में प्राण कर्म करना हैं।
'कर्तव्यपूर्ण' कहलाकर फिर मरना हैं ।।
उद्देश्य एक अपना ऊँचा बनाओ।
कर्तव्य पूर्ण करने में चित्ता लावो ।।
विश्वास कर्म फल में करते रहोगे।
होगे अवश्य संतुष्ट सुखी रहोगे ।।
विविध चाह विचार प्रसन्नता।
चलित जो करते मन राज को ।।
सब सुसेवक हैं इक प्रेम के।
ज्वलित ही करते उस अग्नि को ।।
('लक्ष्मी', जनवरी, 1913)