अपन गामक मरिचा बाध
कि झौआकोठी गाछी दिस
नवी पोखरिक मोहार
कि बनकुबा बाबाक थान दिस
जार-ठार पड़ौ कि होउ गुमकी-झरकी
उमड़ि अबौ मेघ कि रमकौ बासन्ती सिहकी
अहलभोरेसँ पसर चरबैत
महिसिक पीठ पर बैसल कि ओकर रीढ़क चमड़ी बकुटने
लम्बमान भेल चरबाह
अलबेला स्वरमे संगीत-संधान करै छल।
कने थम्हि क’-
माल-जालकें चर’ लेल अनेर छोड़ि दैत
आ मचलैत किशोर दल उन्मुक्त तान हेरै छल।
फेर कने थमिह क’-
छागर-पाठी हँकैत टेल्ह सभ
अनायासे कोनो भनिता ध’ लै छल।
फेर कने थमिह क’-
कोनो प्रौढ़
धएने कान्ह पर कोदारि
आ कोनो बूढ़
छिट्टा-खुरपीकें माथ पर उघने चलैत
अल्हा-रूदल कि लैला-मजनू
कि लोरिक-बनिजारा कि दीनाभद्री
कि राय रनपाल महागाथाक टुकड़ी अलापै छल।
अपन कानसँ ई सभ सुनैत रही जहिया।
तँ सत्ते कहै छी
बुझि पड़ए हमरा
प्रकृति जेना अपनहिंसँ भास उठा लेने हो !
अपन गामक ओहि दलानसँ कि ओहि खरिहानसँ
सितलपाटी पर कि खिनहरि-चटकुन्नी पर
खजुरपटिया पर कि फटलाहा सपटा पर
घोदमोद बैसल चटिया सभक
खाँत रटैत कि ककहरा घोंखैत
उठैत अनघोल
जहिया साँझ-प्रात कानमे पड़ैत रहए
तँ सत्ते कहै छी
बुझि पड़ए हमरा
सोहरा रहल होथिन अहा ! नेना सभक चानि
स्वयं भारती
अपन गाम
ओहि दरबज्जा पर कि ओहि गोला पर
भगवतीनाथक ओहि चबूतरा पर
कि स्कूलक ओहि मैदानमे
खादीभण्डारक ओसार पर
कि चौक परक दोकानमे
अस्पतालक आगाँमे
कि युवक संघक अँगनैमे
तेसर पहर दिन झुकिते
सतरंजक स’हपर कि कोनो गुलछर्राक त’ह पर
गाम भरिक सभ फरिक
सभ तूरक लग-दूरक
सभ भाँतिक, सभ काँतिक
नातिसँ ल’ क’ नाना धरि
कतहु क्यो अपन बात पर जोर दैत
तँ कतहु खाँटी गप्पक बोर दैत
कतहु क्यो एकान्ती करैत
तँ कतहु काव्यचर्चा होइत
उमड़ैत हास-उल्लासक मानसरोवरमे
अवगाहन करैत
अपन समाजकें देखैत रही जहिया
तँ सत्ते कहै छी
बुझि पड़ए हमरा
जेना गाछक सिंहार
तुबि-तुबि क’ झहरै छल !
अपन गाममे
ड्योढ़ीटाटक भीतरसँ अबैत
ललना लोकनिक कण्ठ-मधुमे बोरल
विद्यापति-मधुप-रवीन्द्रक गीतामृत
पीबैत रही जहिया
तँ सत्ते कहै छी
बुझि पड़ए हमरा
सुरमे जेना शरदा अपनहिं समा गेल होथि !
अपन गाममे
जनिका पर नजरि पड़ए
जनिकें गप्प होअए-
रहथु गोनू बाबा कि जयनन्दन बाबा
जवान किसुन बाबू की बलदेव बाबू
भुल्लु बाबू कि कुल्लू बाबू
जिबछी कि किसुनमा-
सभमे आपकता
सभ ठाँ सिनेह-भाव
सर्वत्र ममता...
जेम्हरे जाइ तेम्हरे
जे भेटए सैह
सत्ते कहै छी
ओहि उद्गार-आपकतामे
बुझि पड़ए हमरा
जेना अपन हृदय सुमन
हमरा पर झहरा देथि !
आइयो अपन गाम अछि वैह
अपन डीह-डाबर, अपन धाम अछि वैह
ओहिना सभक घर-आँगन
ओहिना दरबज्जा, ओहिना दलान
आइयो लगैत अछि मरिचासँ
बनकूबा थानसँ
ओहनाहे स्वरा-संधान भोर-साँझ
आइयो गुँजैत अछि खरिहान पर
चटिया सभक ककहरा-पाठ आइयो भगवती थानमे
जुटैत अछि नानासँ नाति धरि
(क्यो छरपैत तँ क्यो ठेंगा टेकैत)
कतोक आँगनसँ
विद्यापति-मधुर गुंजन
आइयो कतेको गोटे हमरासँ पुछैत अछि
कुशल-क्षेम
हाल-चाल
मुदा सत्ते कहै छी
आइ एहि वाणीमे
भेटै-ए कत्तौ नहि आह ! मुक्त हास आब
दूर-दूर धरि हृदय-सरितामे तकैत छी
गोर-गोर लोकक
-कमल मुदा मौलाएल !
आइयो अपन गाममे
ढोल पर, डम्फा पर थाप तँ पड़िते अछि
मुदा आब ओकर स्वर
जेना विरस-विरस बुझाइए !
रंग तँ आइयो खेलाएले जाइत अछि
आब मुदा, लोकक मुँह
अरे ! बेदरंग भ’ जाइत छैक !
बसन्त अपन गाममे तँ आइयो अबैत अछि
मुदा सलगाँस मुँह लोक झपनहिं रहैत अछि !
कुशल-क्षेम पुछनिहार
आइयो भेटैत अछि
मुदा आँखिक पुतरी ओकर कोनादन नचैत छैक !
लोकक चेहरा तँ चीन्हल बुझि पड़ै-ए
आइ अपन गामे मुदा अनभुआर लगैत अछि।