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ध्रुवतारा / विभूति आनन्द

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।।एक।।

अपन परिवाक लेल
मुट्ठी भरि प्रकाशकें
जोगा क’ रखबाक सेहन्ता लेने
अपनहि छाहरिक संग भुतिया रहल छी-
एहि शहरसँ ओहि शहर
एहि डेरासँ ओहि डेरा....
गाम
एक पातर रेघा सन
निर्बाध
छटपटाइत रहल अछि....

गामक जाहि उजासमे
काल्हि
उठि क’ ठाढ़ भेल रही,
आइ एक प्लेटफार्म सन भ’ गेल अछि !
ई प्लेटफार्म कें
पसिन्न नहि छनि-
से एक फराक दुख अछि

।।दू।।
हमर ई जीवन
लटकल सन देखाइत अछि
बाल-बच्चाक ई स्थानान्तरणीय गामघर
हम भोगि नहि पबैत छी
भगैत छी
भगैत रहैत छी
भगिते जाइत छी ....
आयु मुँह दूसैत अछि
आ हम दुर्बल भेल जाइत छी

।।तीन।।
परिवारक इच्छा नहि रहै,
हम गाम गेल रही
नीक लागल रहए भोर
बाँचल रहए बसातमे स्निग्धता
चून-तमाकूक संबंध शेष रहै
पाकल गहुमक झूमैत बालिक आंतरिक संगीत
तथा हर आ हरबाहक मिलाप
सुनबा-देखबा-भोगबा लेल भेटल रहए..
अखरल छल बस एकेटा गप
जे ओत’ हम नहि रही
संगी-साथी नहि रहए
गाम कुहरि रहल छल
आ हम भागि रहल छलहुँ
कोनो किरायाक मकानमे
शापित सन जीबाक लेल....