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कन्हैयालाल मत्त / परिचय

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कन्हैयालाल मत्त जी का जन्‍म 18 अगस्‍त, 1911 को टूंडला से चार किलोमीटर दूर ग्राम जारखी में हुआ। जारखी उनका ननिहाल था। पिता पंडित घासीराम शर्मा हाथरस में थे। बचपन हाथरस में बिता और यहीं प्रारम्भिक शिक्षा हुई। इसके बाद पढ़ने के लिए आगरा आ गए। यहाँ रहकर शिक्षा पूरी की। विवाह के बाद बुलंदशहर आ गए। करीब सात-आठ महीने यहां रहे। दिल्‍ली में रक्षा मंत्रालय में लिपिक की नौकरी लग जाने के बाद गाजियाबाद आ गए और आजीवन रहीं रहे। हालांकि उनकी ख्‍याति बाल कवि के रूप में अधिक है, लेकिन उन्‍होंने प्रौढ़ साहित्‍य भी काफी मात्रा में लिखा। उनका देहांत 2 दिसम्‍बर, 2003 को हुआ।

प्रमुख कृतियाँ

प्रौढ़ साहित्‍य

  • अर्घ्‍यपाद्य
  • श्रद्धा के फूल
  • आगे बढ़ो
  • जवान
  • अपनी वाणी : अपने गीत, गंध कहीं खो गई

बाल साहित्‍य

  • बोल रही मछली कित्‍ता पानी
  • आटे बाटे सैर सपाटे
  • जम रंग का मेला
  • सैर करें बाजार की
  • जंगल में मंगल
  • खेल-तमाशे

मत्त जी हिंदी में लोरियां लिखने वाले पहले कवि हैं। लोरियों की पहली किताब ‘लोरियाँ और बालगीत’ 1941 में प्रकाशित हुई। इसके अलावा ‘रजत-पालना’ और ‘स्‍वर्ग-हिंडोला’ उनकी लोरियों की पुस्‍तकें हैं।