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विनय / मनोज कुमार झा

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नहीं, अभी नहीं
अभी रात बहुत तेज है
अभी नहीं जा सकता पोखर तक
लोग लूट रहे मछलियाँ, लूटने दो
पानी जाने के बाद पहली बार आया हूँ घर
तुमने लीपा है जलधर मिट्टी को
पूरे शरीर को बाँध दिया है घर की गंध ने
नहीं, अभी नहीं जाऊँगा
चलो एक दिन और सिर्फ भात के कौर
बच्चों की तरफ तो मेरी माँ भी झुकी हुई थी
मगर तुम ही बोलो मेरा भी और कहाँ ठौर।