Last modified on 26 जून 2013, at 15:31

सेब / महेश वर्मा

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:31, 26 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश वर्मा }} {{KKCatKavita}} <poem> जब इतनी बारि...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जब इतनी बारिश लगातार हुई
कि डूब सकता था कुछ भी
मैं भागकर कमरे में आया और
उठाकर बाहर आ गया - यह अधखाया सेब।
मुझे याद आया जब लगी थी आग पिछली गर्मियों में
तब भी मैंने बचाया था -
एक अधखाया सेब।
जाड़े में धीमे सड़ती हैं चीजे़ं लेकिन
पाले में उँगलियाँ गलने से पहले भी
मैनें ज़मीन से उठाकर रख लिया था जूठा सेब।
इससे पहले कि इसमें ढूँढ़ लिया जाए कोई संदर्भ
इस बेकार की चीज़ को -
मैं उछालता हूँ आपकी ओर।