Last modified on 28 जून 2013, at 15:43

भारत- 2001 / रविकान्त

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:43, 28 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविकान्त }} {{KKCatKavita}} <poem> पहले मैं सुनत...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पहले मैं सुनता था
पर मानता नहीं था

फिर बहुत अधिक सुनने लगा
तब दुःख हुआ

पर जब मैंने अपने परिचितों को आतंकित देखा
तब मैं डरने लगा

अब जबकि मेरे बहुत ही करीबियों के साथ
यह बात हो चुकी है
मैं
हर हुच्-हुच् या उँग-उँग की आवाज से
बुरी तरह काँप जाता हूँ
कि कहीं
बगल के कमरे में, आँगन में, या कि
आगे की ओर बरामदे में
किसी का गला तो नहीं रेता जा रहा है!

यह ऊँ-हुच की खसखसी आवाज
माँ की तो नहीं है न, न पिता की
भाई या बहनों में से तो कोई
नहीं ही होगा यह!

और दिन के दो बजे
मेज से उठकर
डोल आता हूँ मैं
घर-भर में