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बरवै नायिका-भेद / रहीम

   
(दोहा)

कवित कह्यो दोहा कह्यो, तुलै न छप्‍प्‍य छंद ।
बिरच्‍या यहै विचार कै, यह बरवैरस कंद ।।1।।

(मंगलाचरण)

बंदौ देवि सरदवा, पद कर जोरि ।
बरनत काव्‍य बरैवा, लगै न खोरि ।।2।।

(उत्‍तमा)

लखि अपराध पियरवा, नहिं रिस कीन ।
बिहँसत चनन चउकिया, बैठक दीन ।।3।।

(मध्‍यमा)

बिनुगुन पिय-उर हरवा, उपट्यो हेरि ।
चुप ह्वै चित्र पुतरिया, रहि मुख फेरि ।।4।।

(अधमा)

बेरिहि बेर गुमनवा, जनि करु नारि ।
मानिक औ गजमुकुता, जौ लगि बारि।।5।।

(स्‍वकीया)

रहत नयन के कोरवा, चितवनि छाय ।
चलत न पग-पैजनियॉं, मग अहटाय ।।6।।

(मुग्‍धा)

लहरत लहर लहरिया, लहर बहार ।
मोतिन जरी किनरिया, बिथुरे बार ।।7।।

लागे आन नवेलियहि, मनसिज बान ।
उसकन लाग उरोजवा दृग तिरछान ।।8।।

(अज्ञातयौवना)

कवन रोग दुहुँ छतिया, उपजे आय ।
दुखि दुखि उठै करेजवा, लगि जनु जाय ।।9।।

(ज्ञातयौवना)

औचक आइ जोबनवाँ, मोहि दुख दीन ।
छुटिगो संग गोइअवॉं नहि भल कीन ।।10।।

(नवोढ़ा)

पहिरति चूनि चुनरिया, भूषन भाव ।
नैननि देत कजरवा, फूलनि चाव ।।11।।

(विश्रब्‍ध नवोढ़ा)

जंघन जोरत गोरिया, करत कठोर ।
छुअन न पावै पियवा, कहुँ कुच-कोर ।।12।।

(मध्‍यमा)

ढीलि आँख जल अँचवत, तरुनि सुभाय ।
धरि खसिकाइ घइलना, मुरि मुसुकाय ।।13।।

(प्रौढ़ रतिप्रीता)

भोरहि बोलि कोइलिया, बढ़वति ताप ।
घरी एक घरि अलवा, रह चुपचाप ।।14।।

(परकीया)

सुनि सुनि कान मुरलिया, रागन भेद ।
गैल न छाँड़त गोरिया, गनत न खेद ।।15।।

(ऊढ़ा)

निसु दिन सासु ननदिया, मुहि घर हेर ।
सुनन न देत मुरलिया मधुरी टेर ।।161।

(अनूढ़ा)

मोहि बर जोग कन्‍हैया लागौं पाय ।
तुहु कुल पूज देवतवा, होहु सहाय ।।17।।

(भूत सुरति-संगोपना)

चूनत फूल गुलबवा डार कटील ।
टुटिगा बंद अँगियवा, फटि पट नील ।।18।।

आयेसि कवनेउ ओरवा, सुगना सार ।
परिगा दाग अधरवा, चोंच चोटार ।।19।।

(वर्तमान सुरति-गोपना)

मं पठयेउ जिहि मकवॉं, आयेस साध ।
छुटिगा सीस को जुरवा, कसि के बाँध ।।20।।

मुहि तुहि हरबर आवत, भा पथ खेद ।
रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद ।।21।।

(भविष्‍य सुरति-गोपनान)

होइ कत आइ बदरिया, बरखहि पाथ ।
जैहौं घन अमरैया, सुगना सा‍थ ।।22।।

जैहौं चुनन कुसुमियॉं, खेत ब‍डि दूर ।
नौआ केर छोहरिया, मुहि सँग कूर ।।23।।

(क्रिया-विदग्‍धा)

बाहिर लैके दियवा, बारन जाय ।
सासु ननद ढिग पहुँचत, देत बुझाय ।।24।।

(वचन-विदग्‍धा)

तनिक सी नाक नथुनिया, मित हित नीक ।
क‍हति नाक पहिरावहु, चित दै सींक ।।25।।

(लक्षिता)

आजु नैन के कजरा, औरे भाँत ।
नागर नहे नवेलिया, सुदिने जात ।।26।।

(अन्‍य-सुरति-दु:खिता)

बालम अस मन मिलियउँ, जस पय पानि ।
हँसिनि भइल सवतिया, लइ बिलगानि ।।27।।

(संभोग-दु:खिता)

मैं पठयउ जिहि कमवाँ, आयसि साध ।
छुटिगो सीस को जुरवा, कसि के बाँधि ।।28।।

मुहि तुहि हरबत आवत, भव पथ खेद ।
रहि रहि लेत उससवा, बहत प्रसेद ।।29।।

(प्रेम-गर्विता)

आपुहि देत जवकवा, गूँदत हार ।
चुनि पहिराव चुनरिया, प्रानअधार ।।30।।

अवरन पाय जवकवा, नाइन दीन ।
मुहि पग आगर गोरिया, आनन कीन ।।31।।

(रूप-गर्विता)

खीन मलिन बिखभैया, औगुन तीन ।
मोहिं कहत विधुबदनी, पिय मतिहीन ।।32।।

दातुल भयसि सुगरुवा, निरस पखान ।
यह मधु भरल अधरवा, करसि गुमान ।।33।।

(प्रथम अनुशयना, भावी-संकेतनष्‍टा)

धीरज धरु किन गोरिया करि अनुराग ।
जात जहाँ पिय देसवा, घन बन बाग ।। 34।।

जनि मरु रोय दुलहिया, कर मन ऊन ।
सघन कुंज ससुररिया, औ घर सून ।।35।।

(द्वितीय अनुशयना, संकेत-विघट्टना)

जमुना तीर तरुनिअहि लखि भो सूल ।
झरिगो रूख बेइलिया, फुलत न फूल ।।36।।

ग्रीषम दवत दवरिया, कुंज कुटीर ।
तिमि तिमि तकत तरुनिअहिं, बाढ़ी पीर ।।37।।

(तृतीय अनुशयना, रमणगमना)

मितवा करत बँसुरिया, सुमन सपात ।
फिरि फिरि तकत तरुनिया, मन पछतात ।।38।।

मित उत तें फिरि आयेउ, देखु न राम ।
मैं न गई अमरैया, लहेउ न काम ।।39।।

(मुदिता)

नेवते गइल ननदिया, मैके सासु ।
दुलहिनि तोरि ख‍बरिया,आवै आँसु ।।40।।

जैहौं काल नेवतवा, भा दु:ख दून ।
गॉंव करेसि रखवरिया, सब घर सून ।।41।।

(कुलटा)

जस मद मातल हथिया, हुमकत जात ।
चितवत जात तरुनिया, मन मुसकात ।।42।।

चितवत ऊँच अटरिया, दहिने बाम ।
लाखन लखत विछियवा, लखी सकाम ।।43।।

(सामान्या गणिका)

लखि लखि धनिक नयकवा बनवत भेष ।
रहि गइ हेरि अरसिया कजरा रेख ।।44।।

(मुग्‍धा प्रोषितपतिका)

कासो कहौ सँदेसवा, पिय परदेसु ।
लागेहु चइत न फले तेहि बन टेसु ।।45।।

(मध्‍या प्रोषितपतिका)

का तुम जुगुल तिरियवा, झगरति आय ।
पिय बिन मनहुँ अटरिया, मुहि न सुहाय ।।46।।

(प्रौढ़ा प्रोषितपतिका)

तैं अब जासि बेइलिया, बरु जरि मूल ।
बिनु पिय सूल करेजवा, लखि तुअ फूल ।।47।।

या झर में घर घर में, मदन हिलोर ।
पिय नहिं अपने कर में, करमै खोर ।।48।।

(मुग्‍धा खंडिता)

सखि सिख मान नवेलिया, कीन्‍हेसि मान ।
पिय बिन कोपभवनवा, ठानेसि ठान ।।49।।

सीस नवायँ नवेलिया, निचवइ जोय ।
छिति खबि, छोर छिगुरिया, सुसुकति रोय ।।50।।

गिरि गइ पीय पगरिया, आलस पाइ ।
पवढ़हु जाइ बरोठवा, सेज डसाइ ।।51।।

पोछहु अधर कजरवा, जावक भाल ।
उपजेउ पीतम छतिया, बिनु गुन माल ।।52।।

(प्रौढ़ा खंडिता)

पिय आवत अँगनैया, उठि कै लीन ।
सा‍थे चतुर तिरियवा, बैठक दीन ।।53।।

पवढ़हु पीय पलँगिया, मींजहुँ पाय ।
रैनि जगे कर निंदिया, सब मिटि जाय ।।54।।

(परकीया खंडिता)

जेहि लगि सजन सनेहिया, छुटि घर बार ।
आपन हित परिवरवा, सोच परार ।।55।।

(गणिका खंडिता)

मितवा ओठ कजरवा, जावक भाल ।
लियेसि का‍ढ़ि बइरिनिया, तकि मनिमाल ।।56।।

(मुग्‍धा कलहांतरिता)

आयेहु अबहिं गवनवा, जुरुते मान ।
अब रस लागिहि गोरिअहि, मन पछतान ।।57।।

(मग्‍धा कलहांतरिता)

मैं मतिमंद तिरियवा, परिलिउँ भोर ।
तेहि नहिं कंत मनउलेउँ, तेहि कछु खोर ।।58।।

(प्रौढ़ा कलहांतरिता)

थकि गा करि मनुहरिया, फिरि गा पीय ।
मैं उठि तुरति न लायेउँ, हिमकर हीय ।।59।।

(परकीया कलहांतरिता)

जेहि लगि कीन बिरोधवा, ननद जिठानि ।
रखिउँ न लाइ करेजवा, तेहि हित जानि ।।60।।

(गणिका कलहांतरिता)

जिहि दीन्‍हेउ बहु बिरिया, मुहि मनिमाल ।
तिहि ते रूठेउँ सखिया, फिरि गे लाल ।।61।।

(मुग्‍धा विप्रलब्‍धा)

लखे न कंत सहेटवा, फिरि दुबराय ।
धनिया कमलबदनिया, गइ कुम्हिलाय ।।62।।

(मध्‍या विप्रलब्‍धा)

देखि न केलि-भवनवा, नंदकुमार ।
लै लै ऊँच उससवा, भइ बिकरार ।।63।।

(प्रौढ़ा विप्रलब्‍धा)

देखि न कंत सहेटवा, भा दुख पूर ।
भौ तन नैन कजरवा, होय गा झूर ।।64।।

(परकीया विप्रलब्‍धा)

बैरिन भा अभिसरवा, अति दुख दानि ।
प्रातउ मिलेउ न मितवा, भइ पछितानि ।।65।।

(‍गणिका विप्रलब्‍धा)

करिकै सोरह सिंगरवा, अतर लगाइ ।
मिलेउ न लाल सहेटवा, फिरि पछिताई ।।66।।

(मुग्‍धा उत्‍कंठिता)

भा जुग जाम जमिनिया, पिय नहिं जाय ।
राखेउ कवन सवतिया, रहि बिलमाय ।।67।।

(मध्‍या उत्‍कंठिता)

जोहत तीय अँगनवा, पिय की बाट ।
बेचेउ चतुर तिरियवा, केहि के हाट ।।68।।

(प्रौढ़ा उत्‍कंठिता)

पिय पथ हेरत गोरिया, भा भिनसार ।
चलहु न करिहि तिरियवा, तुअ इतबार ।।69।।

(परकीया उत्‍कंठिता)

उठि उठि जात खिरिकिया, जोहत बाट ।
कतहुँ न आवत मितवा, सुनि सुनि खाट ।।70।।

(गणिका उत्‍कंठिता)

कठिन नींद भिनुसरवा, आलस पाइ ।
धन दै मूरख मितवा, रहल लोभाइ ।।71।।

(मुग्‍धा वासकसज्‍जा)

हरुए गवन नबेलिया, दीठि बचाइ ।
पौढ़ी जाइ पलँगिया, सेज बिछाइ ।।72।।

(मध्‍या वासकसज्‍जा)

सुभग बिछाई पलँगिया, अंग सिंगार ।
चितवत चौंकि तरुनिया, दै दृ्ग द्वार ।।73।।

(प्रौढ़ा वासकसज्‍जा)

हँसि हँसि हेरि अरसिया, सहज सिंगार ।
उतरत चढ़त नवेलिया, तिय कै बार ।।74।।

(परकीया वासकसज्‍जा)

सोवत सब गुरू लोगवा, जानेउ बाल ।
दीन्‍हेसि खोलि खिरकिया, उठि कै हाल ।।75।।

(सामान्‍या वासकसज्‍जा)

कीन्‍हेसि सबै सिंगरवा, चातुर बाल ।
ऐहै प्रानपिअरवा, लै मनिमाल ।।76।।

(मुग्‍धा स्‍वाधीनपतिका)

आपुहि देत जवकवा, गहि गहि पाय ।
आपु देत मोहि पियवा, पान खवाय ।।77।।

(मध्‍या स्‍वाधीनपतिका)

प्रीतम करत पियरवा, कहल न जात ।
रहत गढ़ावत सोनवा, इहै सिरात ।।78।।

(प्रौढ़ा स्‍वाधीनपतिका)

मैं अरु मोर पियरवा, जस जल मीन ।
बिछुरत तजत परनवा, रहत अधीन ।।79।।

(परकीया स्‍वाधीनपतिका)

भो जुग नैन चकोरवा, पिय मुख चंद ।
जानत है तिय अपुनै, मोहि सुखकंद ।।80।।

(सामान्‍या स्‍वाधीनपतिका)

लै हीरन के हरवा, मानिकमाल ।
मोहि रहत पहिरावत, बस ह्वै लाल ।।81।।

(मुग्‍धा अभिसारिका)

चलीं लिवाइ नवेलिअहि, सखि सब संग ।
जस हुलसत गा गोदवा, मत्‍त मतंग ।।82।।

(मध्‍या अभिसारिका)

पहिरे लाल अछुअवा, तिय-गज पाय ।
चढ़े नेह-हथिअवहा, हुलसत जाय ।।83।।

(प्रौढ़ा अभिसारिका)

चली रैनि अँधिअरिया, साहस गा‍ढि ।
पायन केर कँगनिया, डारेसि का‍ढि ।।84।।

(परकीया क(ष्‍णाभिसारिका)

नील मनिन के हरवा, नील सिंगार ।
किए रैनि अँधिअरिया, धनि अभिसार ।।85।।

(शुक्‍लाभिसारिका)

सेत कुसुम कै हरवा भूषन सेत ।
चली रैनि उँजिअरिया, पिय के हेत ।।86।।

(दिवाभिसारिका)

पहिरि बसन जरतरिया, पिय के होत ।
चली जेठ दुपहरिया, मिलि रवि जोत ।।87।।

(गणिका अभिसारिका)

धन हित कीन्‍ह सिंगरवा, चातुर बाल ।
चली संग लै चेरिया, जहवाँ लाल ।।88।।

(मुग्‍धा प्रवत्‍स्‍यत्पतिका)

परिगा कानन सखिया पिय कै गौन ।
बैठी कनक पलँगिया, ह्वै कै मौन ।।89।।

(मध्‍या प्रवत्‍स्‍यत्पतिका)

सुठि सुकुमार तरुयिका, सुनि पिय-गौन ।
लाजनि पौ‍ढि ओबरिया, ह्वै कै मौन ।।90।।

(प्रौढ़ा प्रवत्‍स्‍यत्पतिका)

बन धन फूलहि टेसुआ, बगिअनि बेलि ।
चलेउ बिदेस पियरवा फगुआ खेलि ।।91।।

(परकीया प्रवत्‍स्‍यत्पतिका)

मितवा चलेउ बिदेसवा मन अनुरागि ।
पिय की सुरत गगरिया, रहि मग लागि ।।92।।

(गणिका प्रवत्‍स्‍यत्पतिका)

पीतम इक सुमिरिनिया, मुहि देइ जाहु ।
जेहि जप तोर बिरहवा, करब निबाहु ।।93।।

(गुग्‍धा आगतपतिका)

बहुत दिवस पर पियवा, आयेउ आज ।
पुलकित नवल दुलहिवा, कर गृह-काज ।।94।।

(मध्‍या आगतपतिका)

पियवा आय दुअरवा, उठि किन देख ।
दुरलभ पाय बिदेसिया,मुद अवरेख ।।95।।

(प्रौढ़ा आगतपतिका)

आवत सुनत तिरियवा, उठि हरषाइ ।
तलफत मनहुँ मछरिया, जनु जल पाइ ।।96।।

(परकीया आगतपतिका)

पूछन चली खबरिया, मितवा तीर ।
हरखित अतिहि तिरियवा पहिरत चीर ।।97।।

(गणिका आगतपतिका)

तौ लगि मिटिहि न मितवा, तन की पीर ।
जौ लगि पहिर न हरवा, जटित सुहीर ।।98।।

(नायक)

सुंदर चतुर धनिकवा, जाति के ऊँच ।
केलि-कला परबिनवा, सील समूच ।।99।।

(नायक भेद)

पति, उपपति, वैसिकवा, त्रिबिध बखान ।

(पति लक्षण)

बिधि सो ब्‍याह्यो गुरु जन पति सो जानि ।।100।।

(पति)

लैकै सुघर खुरुपिया, पिय के साथ ।
छइवै एक छतरिया, बरखत पाथ ।।101।।

(अनुकूल)

करत न हिय अपरधवा, सपनेहुँ पीय ।
मान करन की बेरिया, रहि गइ हीय ।।102।।

(‍दक्षिण)

सौतिन करहि निहोरवा, हम कहँ देहु ।
चुन चु चंपक चुरिया, उच से लेहु ।।103।।

(शठ)

छूटेउ लाज डगरिया, औ कुल कानि ।
करत जात अपरधवा, परि गइ बानि ।।104।।

(धृष्‍ट)

जहवाँ जात रइनियाँ तहवाँ जाहु ।
जोरि नयन निरलजवा, कत मुसुकाहु ।।105।।

(उपपति)

झाँकि झरोखन गोरिया, अँखियन जोर ।
फिरि चितवन चित मितवा, करत निहोर ।।106।।

(वचन-चतुर)

सघन कुंज अमरैया, सीतल छाँह ।
झगरत आय कोइलिया, पुनि उड़ि जाह ।।107।।

(क्रिया-चतुर)

खेलत जानेसि टोलवा, नंदकिसोर ।
हुइ वृषभानु कुँअरिया, होगा चोर ।।108।।

(वैशिक)

जनु अति नील अलकिया बनसी लाय ।
भो मन बारबधुअवा, तीय बझाय ।।109।।

(प्रोषित नायक)

करबौं ऊँच अटरिया, तिय सँग केलि ।
कबधौं, पहिरि गजरवा, हार चमेलि ।।110।।

(मानी)

अब भरि जनम सहेलिया, तकब न ओहि ।
ऐंठलि गइ अभिमनिया, तजि कै मोहि ।।111।।

(स्‍वप्‍नदर्शन)

पीतम मिलेउ सपनवाँ भइ सुख-खानि।
आनि जगाएसि चेरिया, भइ दुखदानि ।।112।।

(चित्र दर्शन)

पिय मूरति चितसरिया, चितवन बाल ।
सुमिरत अवधि बसरवा, जपि जपि माल ।।113।।

(श्रवण)

आयेउ मीत बिदेसिया, सुन सखि तोर ।
उठि किन करसि सिंगरवा, सुनि सिख मोर ।।114।।

(साक्षात दर्शन)

बिरहिनि अवर बिदेसिया, भै इक ठोर ।
पिय-मुख तकत तिरियवा, चंद चकोर ।।115।।

(मंडन)

सखियन कीन्‍ह सिंगरवा रचि बहु भाँति ।
हेरति नैन अरसिया, मुरि मुसुकाति ।।116।।

(शिक्षा)

छाकहु बैठ दुअरिया मीजहु पाय ।
पिय तन पेखि गरमिया, बिजन डोलाय ।।117।।

(उपालंभ)

चुप होइ रहेउ सँदेसवा, सुनि मुसुकाय ।
पिय निज कर बिछवनवा, दीन्‍ह उठाय ।।118।।

(परिहास)

बिहँसति भौहँ चढ़ाये, धुनष मनीय ।
लावत उर अबलनिया, उठि उठि पीय ।।119।।





  १.
भोरहिं बोलि कोइलिया बढ़वति ताप .
धरी एक भरि अलिया! रहु चुपचाप .
बाहर लैके दियवा बारन जाई .
सासु ननद पर पहुँचत देति बुझाइ .
पिय आवत अँगनैया उठिकै लीन .
बिहँसत चतुर तिरियवा बैठक दीन .
लै कै सुघर खुरपिया पिय के साथ .
छईबे एक छतरिया बरसत पाथ .
पीतं एक सुमरिनियाँ मोहिं देई जाहु.
जेहि जपि तोर बिरहवा करब निबाहु.