Last modified on 26 फ़रवरी 2008, at 08:39

भविष्य / अनिल जनविजय

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:39, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण

याद हैं मुझे

तुम्हारे वे शब्द

तुमने कहा था--


एक दिन आएगा

जब आदमी

आदमी नहीं रह पाएगा

वह बंजर ज़मीन हो जाएगा

या ठाठें मारता समुद्र