भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भविष्य / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
याद हैं मुझे
तुम्हारे वे शब्द
तुमने कहा था--
एक दिन आएगा
जब आदमी
आदमी नहीं रह पाएगा
वह बंजर ज़मीन हो जाएगा
या ठाठें मारता समुद्र