Last modified on 4 जुलाई 2013, at 17:29

जीवन-क्रमः तीन चित्र / कन्हैयालाल नंदन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:29, 4 जुलाई 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रेशमी कंगूरों पर
नर्म धूप सोयी।
मौसम ने
नस-नस में
नागफनी बोयी!
दोषों के खाते में कैसे लिख डालें
गर अंगारे
याचक बन पाँखुरियाँ माँग गए

कच्चे रंगों से
तसवीर बना डाली,
हल्की बौछार पड़ी
रंग हुए खाली।
कितनी है दूरी,
पर, जाने क्या मजबूरी
कि
टीस के सफ़र की
कई सीढ़ियाँ,
फलाँग गए।

खंड-खंड अपनापन
टुकड़ों में
जीना।

फटे हुए कुर्ते-सा
रोज़-रोज़ सीना।
संबंधों के सूनेपन की अरगनियों में
जगह-जगह
अपना ही बौनापन
टाँग गए!