Last modified on 13 जुलाई 2013, at 13:57

ज्ञानी / संजय कुंदन

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:57, 13 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय कुंदन }} {{KKCatKavita}} <poem> वह जो ज्ञानी...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह जो ज्ञानी है
जो अपने को तीसमार खाँ समझता है
एक अदृश्य घोड़े पर सवार रहता है
उसके पास एक अदृश्य मुकुट भी है
जो अक्सर वह सिर पर डाले रहता है

वैसे उसके पास एक अदृश्य दुम भी है
जिसे वह खास मौके पर बाहर निकालता है
फिर दुम क्या करती होगी
यह तो समझा ही जा सकता है

कई बार अदृश्य घोड़े पर चढ़ते समय
उसका अदृश्य मुकुट हिलने लगता है
जिसे सँभालने के चक्कर में
वह गिर जाता है

जमीन पर गिरा हुआ ज्ञानी
ज्ञानी नहीं लगता
तब वह गला दबा कर
शब्दों को चबा-चबा कर नहीं बोलता
एक मामूली आदमी की तरह
अनुरोध करता है - जरा उठा दो भाई!