बीते सालों की तरह
बीत जायेगा आठ मार्च
भागो कमला, सुनीता, बिमला
मुँहअंधेरे उठ
ले चलेगी ढोर-डंगर
जायेगी बेगार करने
खेत खलिहानों में
उठायेगी बाँह भर-भर ईंटें
खटेगी दिन भर पेट की भट्टी में
बितायेगी इस आस पर दिन
कि काम जल्दी निपटे---
फिर धूप में बैठ दो पल
एक छोटी सी बीड़ी के सहारे
मिटायेगी थकान
सच, महिला दिवस
इनके लिए अभी सपना है
बीतेगा उनके लिए भी
यह आठ मार्च
जो क्लर्क है, आया है
टीचर है सेल्सगर्ल है
जो खटती और बजती है
घर-बाहर के बीच
आधे दाम पर दिन-रात
काम करती है
इस उम्मीद से कि प्याला भर चाय
सकून से पी पायेगी
महिला दिवस
अभी भी उनकी ज़रूरत है।
कितनी सरिताएँ
कंधों पर झोले लादे
समाज बदलाव के विचार से
लबरेज
अपनी फटी जिन्स पर
आदर्श का मफलर डाल
मानवता के फटे जूते पहन
जायेंगी
गांव- देहात, स्लम
और एक दिन
मारी जायेंगी
शायद महिला दिवस
उनसे ही आयेगा...