बुनियादी तौर पर हर औरत
मन से स्वतन्त्र होती है,
उसे नहीं भाता ढोंग
पर फिर भी करती है।
लम्बी टिकुली, चूड़ी भरे हाथ
सिन्दूर सिक्त माथा
उसे कभी नहीं लुभा पाता
फिर भी करती है अभिनय--
इसमें रचे- बसे रहने का
शायद...
यही रास्ता शेष है उसके जीने का।