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दिशान्ध / अनिता भारती

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भूख, प्यास और
दुःख में
सर्दी, गर्मी, बरसात में
ज़मीन पर, कुर्सी पर
तुमने जी भर
ओढ़ा, बिछाया, लपेटा
अम्बेडकरी चादर को

फिर तह कर चादर
रख दी तिलक पर
और तिलकधारियों के साथ
सुर मिलाया
हे राम! वाह राम!

तुमने छाती से लगायी
तलवार
और तराजू बन गया
तुम्हारा ताज

पर जूता!
जूता तो पैरों में ही रहा
समझौते की ज़मीन पर
चलते-चलते
कराह उठा, चरमरा उठा
हो गये हैं उसकी तली में
अनगिनत छेद

उन छेदों से छाले
पैरों में नहीं
छाती पर जख्म बनाते हैं
लहूलुहान पैर नहीं
जूतों की जमातें हैं।