रंगी परातों से चिह्नित कर
चलते पायल-से रिश्ते
हँसी-ठिठोली की अनुगूँजें
भरते, कलकल-से रिश्ते
पसली के अंतिम कोने तक
कभी कहकहे भर देते
दिन-रातों की आँख-मिचौनी
हैं ये चंचल-से रिश्ते
उमस घुटन की वेला आती
धरती जब अकुलाती है
घन-अंजन आँखों से चुपचुप
बरसें बादल -से रिश्ते
पलकों में भर देने वाली
उंगली पर रह जाते हैं
बैठ अलक काली नजरों का
जल हैं, काजल -से रिश्ते
कभी तोड़ देते अपनापन
कभी लिपट कर रोते हैं
कभी पकड़ से दूर सरकते
जाते, पागल -से रिश्ते