नदी-किनारे
लम्बी घास में
अंगुलियाँ फिरा जाती है हवा,
जैसे एक अनाथ बच्ची के सर पर
हाथ रख जाती है हवा.
झड़ जाती है ओस
जैसे उसकी आँखों से आँसू,
बिखर जाती है धूप,
फिर खिलखिलाहट सी...
यहाँ-वहाँ
नदी-किनारे
लम्बी घास में
अंगुलियाँ फिरा जाती है हवा,
जैसे एक अनाथ बच्ची के सर पर
हाथ रख जाती है हवा.
झड़ जाती है ओस
जैसे उसकी आँखों से आँसू,
बिखर जाती है धूप,
फिर खिलखिलाहट सी...
यहाँ-वहाँ