जिंदगी के
थके-उबाऊ
रास्तों पर घिसटते हुए
जब टूटने लगती है
देह, और
मन हो जाता है
उदास, बेहद उदास, तब
क्यूँ जी चाहता है
तुम्हारे चेहरे पर लिखा
अपना नाम पढ़ने को...?
जिंदगी के
थके-उबाऊ
रास्तों पर घिसटते हुए
जब टूटने लगती है
देह, और
मन हो जाता है
उदास, बेहद उदास, तब
क्यूँ जी चाहता है
तुम्हारे चेहरे पर लिखा
अपना नाम पढ़ने को...?