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अपशगुन / उमा अर्पिता

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संबंधों की
अनपायनी
शिला को तुमने
रेत के घरौंदे-सा
ढहा दिया--और
मेरे भीतर मौल गईं
तमाम लाल-हरी चूड़ियाँ!
शगुनों की देहरी पर
पाँव रखने से पहले ही
तुम्हारे हाथों
हुए इस अपशगुन को
अपने विश्वास का
उपहार मानूँ या नियति?