Last modified on 17 जुलाई 2013, at 19:08

सपने / उमा अर्पिता

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:08, 17 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उमा अर्पिता |संग्रह=कुछ सच कुछ सप...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

अनायास ही तुम्हारी यादें
चुपके से आ
मेरे कंधे पर
अपना सिर टिका देती हैं--
और उँगलियाँ
फिरने लगती हैं,
तुम्हारे बालों में!
ऐसे में तुम्हारी निश्चिंतता
बोने लगती है
आँखों में
अनगिनत सपने--
सपने, जो पानी के बुलबुले हैं/
सपने, जो रेत के घरौंदे हैं/
सपने, जो बस सपने हैं...!
सपने-ही-सपने
सुंदर-सलोने सपने
जाने-अनजाने सपने
कितने नादान हैं हम, जो
सपनों की दुनिया बसाते हैं/
सपनों के रंगमहल में बसते हैं/
सपनों को पालते हैं और
सपनों की गोद में पलते हैं!
क्या नहीं जानते कि
अगर सच हो जाते, तो
सपने, सपने क्यों कहलाते?