Last modified on 27 अक्टूबर 2007, at 15:34

शब्द / अचल वाजपेयी

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:34, 27 अक्टूबर 2007 का अवतरण


हर शब्द

कहीं न कहीं

कुछ बोलता है

वह कभी आग

कभी काला धुआँ

कभी धुएँ का

अहसास होत है


आओ, इस शब्द को

जलती आग-सा जियें