Last modified on 19 अगस्त 2013, at 15:16

लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी

सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:16, 19 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='वहशत' रज़ा अली कलकत्वी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट
नहीं मुझ को भाती तुम्हारी बनावट

पड़ा था उसे काम मेरी जबीं से
वो हँगामा भूली नहीं तेरी चौखट

ये तमकीं है और लब हों जान-ए-तबस्सुम
न खुल जाए ऐ शोख़ तेरी बनावट

मैं धोके ही खाया किया ज़िंदगी में
क़यामत थी उस आश्ना की लगावट

ठिकाना तेरा फिर कहीं भी न होगा
न छूटे कभी ‘वहशत’ उस बुत की चौखट