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'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
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'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
जन्म | 1881 |
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निधन | 1956 |
जन्म स्थान | कलकत्ता, पश्चिम बंगाल, भारत |
कुछ प्रमुख कृतियाँ | |
विविध | |
जीवन परिचय | |
'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी / परिचय |
ग़ज़लें
- आँख में जलवा तिरा दिल में तिरी याद रहे / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- आह-ए-शब-ए-नाला-ए-सहर ले कर / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- आज़ाद उस से हैं के बयाबाँ ही क्यूँ न हो / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- ऐ अहल-ए-वफ़ा ख़ाक बने काम तुम्हारा / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- और इशरत की तमन्ना क्या करें / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- चला जाता है कारवान-ए-नफ़स / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- दर्द आके बढ़ा दो दिल का तुम ये काम तुम्हें क्या मुश्किल है / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- देखना वो गिर्या-ए-हसरत मआल आ ही गया / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- दिल के कहने पे चलूँ अक़्ल का कहना न करूँ / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- जो तुझ से शोर-ए-तबस्सुम ज़रा कमी होगी / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- कहते हो अब मेरे मज़लूम पे बे-दाद न हो / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- किस नाम-ए-मुबारक ने मज़ा मुँह को दिया है / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- लगाओ न जब दिल तो फिर क्यूँ लगावट / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- लूटा है मुझे उस की हर अदा ने / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- मुरव्वत का पास और वफ़ा का लिहाज़ / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- नालों से अगर मैं ने कभी काम लिया है / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- नहीं के इश्क़ नहीं है गुल ओ सुमन से मुझे / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- नहीं मुमकिन लब-ए-आशिक़ से हर्फ़-ए-मुद्दआ निकले / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- पोशीदा देखती है किसी की नज़र मुझे / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- संग-ए-तिफ़्लाँ फ़िदा-ए-सर न हुआ / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- शौक़ देता है मुझे पैग़ाम-ए-इश्क़ / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- शौक़ ने इशरत का सामाँ कर दिया / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- शौक़ फिर कूचा-ए-जानाँ का सताता है मुझे / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- सुरूर-अफ़ज़ा हुई आख़िर शराब आहिस्ता आहिस्ता / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- तल्ख़ी-कश-ए-नौमीदि-ए-दीदार बहुत हैं / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- तीर-ए-नज़र ने ज़ुल्म को एहसाँ बना दिया / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- तू है और ऐश है और अंजुमन-आराई है / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- वफ़ा-ए-दोस्ताँ कैसी जफ़ा-ए-दुश्मनाँ कैसी / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
- जान उस की अदाओं पर निकलती ही रहेगी / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी