आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी
आप अपना रू-ए-ज़ेबा देखिए
या मुझे महव-ए-तमाशा देखिए
शौक़ को हँगामा-आरा देखिए
कारोबार-ए-हसरत-अफज़ा देखिए
रंग-ए-गुल-ज़ार-ए-तमन्ना देखिए
दिल-कशी-हा-ए-तमाशा देखिए
हुस्न है सौ रंग में तहसीं तलब
दीदा-ए-हैराँ से क्या क्या देखिए
बज़्म में उस बे-मुरव्वत की मुझे
देखना पड़ता है क्या क्या देखिए
हसरत आँखों में है लब ख़ामोश हैं
शेव-ए-अर्ज़-ए-तमन्ना देखिए
हाए रे ज़ौक़-ए-तमाशा-ए-जमाल
ख़ुद तमाशा हूँ तमाशा देखिए
आप ने फिर कर न देखा इस तरफ़
हो गया ख़ून-ए-तमन्ना देखिए
उठती हैं नज़रें मेरी किस शौक़ से
मुझ को हँगाम-ए-तमाशा देखिए
हसरतों का हाए रे दिल में हुजूम
आरज़ुओं का नतीजा देखिए
सजदे को बे-ताब होती हैं जबीं
शोख़ी-ए-नक़्श-ए-कफ़-ए-पा देखिए
मैं हूँ उस साक़ी का दीवाना जिसे
देखिये जब मस्त-ए-सहबा देखिए
ख़ाक में किस दिन मिलाती है मुझे
उस से मिलने की तमन्ना देखिए
कहते हैं कर लेंगे उस काफ़िर को राम
हज़रत-ए-‘वहशत’ का दावा देखिए