भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम / 'वहशत' रज़ा अली कलकत्वी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पैमान-ए-वफ़ा-ए-यार हैं हम
यानी ना-पाएदार हैं हम

ख़ाक-ए-सर-ए-रह-गुज़ार हैं हम
पामाल-ए-जफ़ा-ए-यार हैं हम

नौमीदी ओ यास चार सू है
उफ़ किस के उम्मीदवार हैं हम

किस दुश्मन-ए-जाँ की आरज़ू है
जो मौत के ख़्वास्त-गार हैं हम

तू हम से है बद-गुमाँ सद अफ़सोस
तेरे ही तो जाँ-निसार हैं हम

‘वहशत’ ख़ामोश जल रहे हैं
गोया शम-ए-मज़ार हैं हम