Last modified on 20 अगस्त 2013, at 10:14

सत्य वदंत चौरंगीनाथ / चौरंगीनाथ

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:14, 20 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चौरंगीनाथ }} {{KKCatKavita}} {{KKCatBhojpuriRachna}} <poem> सत्...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सत्य वदंत चौरंगीनाथ आदि अंतरि सुनौ ब्रितांत।
सालबाहन धरे हमारा जनम उतपति सतिमा झुठ बलीला।। 1।।

ह अम्हारा भइला सासत पाप कलपना नहीं हमारे मने
हाथ पाव कटाय रलायला निरंजन बने सोष सन्ताप मने
परमेव सनमुष देषीला श्री मछंद्रनाथ गुरु देव
नमसकार करीला नमाइला माथा।। 2।।

आसीरबाद पाइला अम्हे मने भइला हरषित
होठ कंठ तालुका रे सुकाईला धर्मना रुप मछंद्रनाथ स्वमी।। 3।।

मन जान्यै पुन्य पाप मुष बचन न आवै मुषै बोलब्या
कैसा हाथ रे दीला फल मुझे पीलीला ऐसा गुसाई बोलीला।। 4।।

जीवन उपदेस भाषीला फल आदम्हे बिसाला
दोष बुध्या त्रिषा बिसारला।। 5।।

नहीं मानै सोक धर धरम सुमिरला
अम्हे भइला सचेत के तम्ह कहारे बोले पुछीला।। 6।।