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जमुनी रे! / पाण्डेय सुरेन्द्र

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जमुनी रे!
एह छितनार फुलाइल
गुलमुहर का नीचे
दू छन सुस्ता ले रे ।
तोरा पसेना से
ई करिया सड़क
सद्यःस्नाता बन चुकल बिया
आ तें
अपना लटकल लटन के
सँवारतो नइखिस!
जमुनी रे!
एह अमलतास के
फुलाइल गाछ का नीचे
आव
दू छन बइठ त ले!
एह धू-धू करत
बहत तपिश का लहर में
तोर ठंढा-ठंढा साँस
बिखर पसर रहल बा रे!
जमुनी रे!
देख!
सामने फुटपाथ पर के
बिना पटावल जामुन
अब पाके पर आ गइल बा!
तें अपना हाथन के
तनिकी बिसराम त दे ।
ई मायाविनी सड़क
पुरनका इलाहाबाद के ना ह रे!
इँहा तोरा हाथ के छाला सुहुरावे
नंगे पाँव दउड़त
कवनो निराला ना अइहें!
ना अइहें!
जमुनी रे!
ई दिल्ली ह-
नई दिल्ली!
तें ओन्ने मत देख
तें ओन्ने करिया सड़क के पार
ओह फव्वारा का बगल में
गुलाब खिलल बा!
तें त घाम से नहाइल
आ पसेना से सँवारल
जामुन के रंग वाली
जमुनी हउए!
आव,
तनी एह जामुन का नीचे
सुस्ता त ले
हरसिगार आ अमलतास ज
घाम से फुलाइल तें रे जमुनी
जामुन जइसन
गर्मी से लदरल-पसरल
तें रे जमुनी!
जमुनी रे!
जमुनी रे!