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चाननी / बैद्यनाथ पाण्डेय 'कोमल'

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हुलसि-हुलसि के चाननी बिहँसि गइल अकास में।
सुधा बरस गइल सगर,
उमगि चलल डगर-डगर,
सिहर गइल विभावरी ससी के अंक-पाश में।
बाग खिलखिला गइल,
कि दूध से नहा गइल,
अतर के आ गइल इहाँ परी के देश पास में।
अंजोर हो गइल इहाँ,
अंजोर हो गइल उहाँ,
हुलसि गइल जिया अरे उजास के हुलास में।
पंछी कुल सो गइल,
नीरव जग हो गइल,
खो गइल व्यथा सुहासिनी के विमल हास में।
सनेह गुदगुदा गइल,
अजीब रंग छा गइल,
ई आँख बे-पलक भइल सनेहिया के आस में।