मैं हरे पेड़ोंके नीचे खड़ी थी
सिर पर पुआल ले कर
पेड़ मेरे नहीं थे
पर पुआल मेरी थी --
शीत के लम्बे मौसम में
मैं आग जला सकती थी
या
एक नर्म बिछौना बना सकती थी ।
जीवन की उर्वर भूमियों पर
मैं हरे पेड़ोंके नीचे खड़ी थी
सिर पर पुआल ले कर
पेड़ मेरे नहीं थे
पर पुआल मेरी थी --
शीत के लम्बे मौसम में
मैं आग जला सकती थी
या
एक नर्म बिछौना बना सकती थी ।
जीवन की उर्वर भूमियों पर