♦ रचनाकार: अज्ञात
भारत के लोकगीत
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बसहाँ चढल मतबलबा आगे माई शंकर जी दुलहबा
कौने हात डमरु शोभे कौने त्रिशुल धारि
कहाँ सँ बहैछै गंगा के धरबा, आगे माई शंकर जी दुलहबा
बायाँ हाते डमरु शोभे दहिने त्रिशुल धारि
जटबा सँ बहैछै गँगा के धरबा, आगे माई शंकर जी दुलहबा
कहाँ बिभुत शोभे, कहाँ रुद्र माला
कहाँ शोभै छै मृग के छाला, आगे माई शंकर जी दुलहबा
अंग बिभुत शोभे, गले रुद्र माला
डाँरो में शोभेला मृग के छाला, आगे माई शंकर जी दुलहबा
बसहाँ चढल मतबलबा…