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तुम्हीं बताओ / प्रताप सहगल

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जिस शहर में मैं रहता हूं
वहाँ कद्दावर इमारतें हैं
और है ट्रैफिक का शोर
कारखानों का धुआँ
तथा दफ्तरों की घुटन.
वहां सड़कें भी छिपाए हुए हैं अपने छोर
चौराहे घिरे हुए हैं कई हाथों से
और रेस्तरां तथा पार्कों में कई आँखों का जमघट है.
पोस्टरी आंखें मुझे हर ओर से घूरती हैं
समाचार-पत्रों के खुलते हुए मुँह
मुझे अजीब और अमूर्त संकेत करते हुए डराते हैं
और हर गली की सतह पर कई कटघरे बन गए हैं
मेरा हर पल किसी ने खरीद रखा है
मेरी हर अनबोली बात पर भी सेंसर का खतरा है
मेरी धड़कनों का लैबाट्री में किया जाता है परीक्षण
सहायता के नाम पर कई दैत्यों ने अपने लम्बे-लम्बे दांत
और तेज़ नाखून मेरी त्वचा में गड़ा दिए हैं
मुझे कई सूत्रों में बांध कर फेंक दिया गया है
हर कोने, हर चौराहे पर
अब तुम्हीं बताओ
मैं तुम्हें अकेले में कहाँ मिल सकता हूं