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कायदौ / अर्जुनदेव चारण

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ठेठ आंतरै
लाधै
कीं खरौ
ऊभूं जठै
पग रोप
चींथू थनै
आपरौ आपौ छोड़
मुळकती थूं
बधा म्हारौ कुरब
केवट
उफणतौ रगत
निथार खुद नै
उपजा
सपनौ सोवणौ
जकौ
म्हारौ बाजै

म्हैं बांधूं
फेरूं साफौ
थूं लाजाळू बण
धारण कर
धरम
निभा कायदौ
म्हारै साथै रैवण रौ
इण सूं मोटौ
कांई फायदौ