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अगन / अर्जुनदेव चारण

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उण दिन
थारी साख मांडीजी ही
थनै
जगाइजियौ हौ
उण दिन
आंगणै रै
ऐन बीचो बीच
थारै सूं ई
मांगियो हौ
इण अदीठ
सिरजण रौ म्यानौ

जांणता थकां
आ बात
कै निकळियां थारै सूं
सैं
कर लेवै धारण
थारौ रूप
थूं
आय होयगी
थिर
म्हारै अर उणरै बिच्चै
अबै
म्हैं हूं
वो है
अर दोनां रै बिच्चै
जुगां पसरियोड़ी
ऊभी है थूं
जीवती

थूं ई बता
थारै टाळ
किणनै पूछूं
म्हारौ
घर कठै है
अगन।