गैस के गुब्बारे को हवा में उड़ते देखा
मैं अह्लादित होती हूँ।
उसकी उड़ान
अहसास कराती है मुझे भी
आज़ाद होने का।
झटके से ऊपर उठना चाहती हूँ
तो, ज़ोर का झटका लगता है।
गुब्बारा मैं भी हूँ
उड़ने से मुझे रोकते नहीं तुम
उड़ूँ चाहे जितना भी ऊँचा
पर शर्त यह है
डोर का छोर
बाँधे रहोगे तुम
अपनी उँगली में।