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टाबर / प्रमोद कुमार शर्मा

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मेरे मोहल्ले रा टाबर
खेलै मारदड़ी गुल्ली डंडौ अर पकड़म-पकड़ाई
वै खेलै है सगळा खेल
जिका बण्या है फगत बांरी खातर !

जियां
गाड़ी चलावण हाळौ सक्स हुवै फगत डराइवर
बियां ईज
खेलण हाळा टाबर हुवै फगत टाबर !
बै नीं हुवै हिन्दु
अर ना ई वानै
इण बात स्यूं कोई इत्तफाक हुवै
कै दुनिया रौ पहलौ आदमी हो ईसाई।
खेलती टैम
टाबर हुवै फगत टाबर
खेलण हाळा टाबर !

जिकां री चिरळयां
हमेस तबदील हुवै हरख मांय
वै लड़ै आपसरी मांय
मार देवै भाठा ई
ऐक-दूजै रै
अर बाद मांय रोवै
देखर लोई ऐक-दूजै रो !

ऐ‘ई टाबर
ऐक दिन बणावैला मिन्दर
वणावैला मै‘जात !
तोडै़ला मन्दिर !
तोड़ैला मै‘जात !
अर फोड़ैगा ऐक-दूजै रा सिर !
ओ ई होसी बां रो एक खेल
पण साची बात तो आ है
जणा ऐ टाबर, टाबर नी रै‘ज्यावैला !