♦ रचनाकार: अज्ञात
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हमार मुरली भइल बा चोरी, मुरलिया दिलाइ दऽ ए भाई।
सूतल रहलीं कदम के छैयां धर बंसी सिरहानी,
एतने में आ गइल निदिया बैरी, हो गइल मुरली के हानी,
मुरलिया दिलाइ दऽ ए भाई।
ओहि मुरली में प्राण बसल बा छछन जिअरवा मोरी,
जैसे हम हईं तोहरो दुलरुआ ओइसहीं मुरलिया मोरी,
मुरलिया दिखलाइ दऽ ए भाई।
(राजाराम सहनी, सोनपुर)