♦ रचनाकार: वारिस शाह
हीर अक्खाँ जोगिया झूठ बोले
कौं विछड़े यार मिलावदाँई
ऐसा कोई ना मिलया वें मैं ढूँढ थकी
जेड़ा गया नूँ मोड़ लेयावँदाई
मेल रूहाँ दे अज़ल दे रोज़ होए
ते सच्चे इश्क दी न्यूँ तामीर होई
फुल्ल खिल गये पाक मोहब्बताँ दे
कोई राँझा होया, कोई हीर होई
साडे चम दियाँ जुतियाँ करे सोई
जेड़ा ज्यू दा रोग गवावदाँई
भला दस खाँ चिड़ि व छुन्याँ नूँ
कदों रब सच्चा घरीं ले आवदाँई
इक बाज़ तों कंग नू कूंज खोई
वेखाँ चुप है के कुरलावदाँई
दुखाँ वालेयाँ नू गल्लाँ सुखदियाँ ते
किस्से जोड़ जहान सुनावदाँई
इक जट दे खेत नूँ अग्ग लगी
वेखाँ आण के कदों बुझावदाँई
देवाँ चूरियाँ घ्यों दे बाल दिवे
वारस शाह जे सुणा मैं गाँवदाँई
मेरा जूजा मा जेड़ा आण मिले
सिर सदका ओस दे नाणदाँई
भला मोए ते विछड़े कौन मिले
ऐंवे जीवड़ा लोग बुलावदाँई