Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 16:38

पिणघट / सत्यप्रकाश जोशी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:38, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सांझ पड़या घर जांऊ रे कांन्ह
तौ मावड़ पूछै-मटकी कठै?
धीवड़ थारी मटकी कठै?

म्हैं छिण एक
आंख्यां नितार
सूना में सूनी सूनी जोऊं,
मावड़ नै देखूं
तौ सांमी देख्यौ नीं जावै
कांई मिस करूं?
कांई बात बणाऊं?
म्हारी हेजळी जांमण नै
कीकर भरमांऊ?
कीकर बिलमांऊ?

म्हारी रातादेई मां
कुण जांणै कांई समझै?
मावड़ सूं कद छानी रैवै बेटी री बातां?
नित नवी मटकी सूंपै
मीठी भोळावण नित, मीठी सीखां देवै।

पण म्हैं थनै कद जतळायौ रै कांन्ह!
कद जतळायो?

आज मन रौ म्यांनौ दरसाऊं
अचपळा कांन्ह !
जद म्हारी मटकी फूटै
तौ जांणै नेह रा बादळ बूठै,
जांणै प्रीत रौ पांणी बरसै।
फूटी मटकी सूं जद धरौळा छूटै
तो जांणै हेत रा झरणा तूठै।

भींज्योड़ा बसण जद म्हारी देह सूं लिपट जावै
तौ म्हारा मन नै यूं लखावै
म्हारौ कोडीलौ कांन्ह म्हनैं बाथां में भरली।
थारी बाथां रौ ओ बंधण
म्हनै जुग रै बंधण सूं
मुगती देवै।

पण सांझ पड़़यां घर जांऊ रे कांन्ह!
तौ मावड़ पूछै-मटकी कठै?
धीवड़ थारी मटकी कठै?