Last modified on 17 अक्टूबर 2013, at 17:02

उपज /सत्यप्रकाश जोशी

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:02, 17 अक्टूबर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आ उपज !
सौ-सौ गुणी बध ।

आ, धरा सूं, गिगन सूं,
नित कळ-मसीनां सूं
मिनख रै बुकियां रो, मन-मगज रो जोर लै
विग्यांन नै इण कांम गाड़ी जोत
कर दै कनक मूंघी रज
आ उपज ! सौ-सौ गुणी सज !

म्हे गिणां संख्या अरब मैं
सब अरब हां पांच
पांच मूंढा जीमवा नै,
पांच तन, सुख पोखवा नै
ब्स अरब हां पांच ।

पण है हाथ म्हारा दस अरब
दस अरब पग है, पंख है
अर ग्यांन रा घर दस अरब

चीज रै लारै फिरै जद चीज री कीमत
आ उपज
सौ-सौ गुणी बध ।