Last modified on 21 अक्टूबर 2013, at 11:09

मन रे भज ले सीताराम / महेन्द्र मिश्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:09, 21 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

मन रे भज ले सीताराम/तेरा बनि जइहें सभ काम।
दस दरवाजा चोर लगे हैं तू करता आराम।
धन दउलत सभी लूट रहे हैं बचीना कउड़ी दाम/मन रे।
सुन्दर देह देखि जन भूलो ई तो हड्डी चाम।
एक दिन कागा खाई विलसिहें रहिहें नेकी नाम/मन रे।
सुत दारा परिवार मित्र सभी कोई ना अइलें काम।
मतल अटारी सभी यहीं छूटीं संगे ना चली छदाम/मन रे।
द्विज महेन्द्र मरू साधु सेवा सुमिरन आठो याम।
जनम-जनम के पातक छुटिहें अंतमिली सुरधाम।
मन रे भज ले सीताराम।