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सुआ गीत-4 / छत्तीसगढ़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तरी नरी नहा नरी नही नरी ना ना रे सुअना
मोर नयना जोगी, लेतेंव पांव ल पखार
रे सुअना तुलसी में दियना बार
अग्धन महीना अगम भइये
रे सुअना बादर रोवय ओस डार
पूस सलाफा धुकत हवह
रे सुअना किट-किट करय मोर दांत
माध कोइलिया आमा रुख कुहके
रे सुअना मारत मदन के मार
फागुन फीका जोड़ी बिन लागय
रे सुअना काला देवय रंग डार
चइत जंवारा के जात जलायेंव
रे सुअना सुरता में धनी के हमार
बइसाख........ आती में मंडवा गड़ियायेव
रे सुअना छाती में पथरा-मढ़ाय
जेठ महीना में छुटय पछीना
रे सुअना जइसे बोहय नदी धार
लागिस असाढ़ बोलन लागिस मेचका
रे सुआना कोन मोला लेवरा उबार
सावन रिमझिम बरसय पानी
रे सुअना कोन सउत रखिस बिलमाय
भादों खमरछठ तीजा अऊ पोरा
रे सुआना कइसे के देईस बिसार
कुआंर कल्पना ल कोन मोर देखय
रे सुखना पानी पियय पीतर दुआर
कातिक महीना धरम के कहाइस
रे सुअना आइस सुरुत्ती के तिहार
अपन अपन बर सब झन पूछंय
रे सुअना कहां हवय धनी रे तुंहार