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खीझ / शशि सहगल

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सुबह, कलफ लगी साड़ी पहन
आत्मविश्वास से भरपूर देह
घर की दहलीज़ पार करती है
साड़ी का कलफ़
मन को परत दर परत
और दृढ़ करता लगता है
शाम को काम से लौटते वक्त कलफ़
सुबह सा कड़क नहीं रहता
घर की दहलीज़ पर
कदम रखते ही
पानी सा तरल हो
ढूंढ लेती है अपनी जगह
गिलास, प्याली और पतीले में