Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 16:17

विकास / शशि सहगल

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:17, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शशि सहगल |अनुवादक= |संग्रह=मौन से स...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज फिर मन करता है
लिखूँ एक प्रेम कविता
अपने और तुम्हारे संबंधों पर
पलटूँ
विगत वर्षों के पन्ने
घूम आऊँ
कुछ देर उन गलियारों में
जहाँ पहली बार
पहचाना था आदिम गंध को
अपनी उष्मा को
खुद में खुदी को गरक करने की लालसा
बड़ी तेज़ी से महसूस हुई थी
अकेली नहीं थी मैं
समुद्र से तुम
पूरे आवेग के साथ मेरे सामने
ज़रा भी संकोच नहीं हुआ
मेरा व्यक्तित्व
तुमसे मिल हरिया गया
और हम घने पेड़ से
जड़ों को मज़बूत करते
बढ़ने लगे ऊपर
और ऊपर।