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किसी क्षण / नीरजा हेमेन्द्र

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रात का गहन सन्नाटा
मैं बाहर देखने लगी
रोशनी का सूर्य जा चुका है
मेरा हृदय वितृष्णा से भर गया
अनेक प्रयत्नों के बाद
 मैं उबर चुकी हूँ/ इस तम में
तम के साथी, दुर्बलतायें
आक्रमण न कर दें
मैं निशा का सामना करने के लिये
यथेष्ट प्रयत्न करती हूँ
हृदय में भावनायें
प्रस्फुटित होतीं हैं
सामनें अबाध मार्ग
परिलक्षित होता है
दूर-दूर तक उगे हुए
 गुलमोहर की शाखाओं के बीच
सूर्य चमक उठेगा।