Last modified on 23 अक्टूबर 2013, at 17:06

रूपहली शाम / नीरजा हेमेन्द्र

Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:06, 23 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरजा हेमेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सुबह फिर धूप निकलेगी
गुलमोहर के फूल फिर वहाँ
खिल जायेंगे
जहाँ, मैं और तुम मिलेंगे
पंक्षी शाम को लौटेंगे
नीड़ में
तुम भी आ जाओगे
मुझे अपने आगोश में
छुपा लेने के लिये
लेकिन तुम नही जानते
मैं सुबह की रोशनी से
कितनी भयभीत रहने लगी हूँ
हर सवेरा मुझे
कमजोर बना देता है
मेरे अन्दर
अविश्वास भर जाता है
ये अविश्वास मेरे प्रति है
या तुंम्हारे
ये मैं नही जानती
मै सुबह होने के साथ
शाम की प्रतीक्षा करने लगती हूँ
जब तुम एक रूपहली शाम को
लौटोगे।