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बाँचिये तो / कुमार रवींद्र

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बाँचिये तो
नये युग की
कथा हमने भी कही है
 
ज़िक्र इसमें आरती का
जो धुआँ देने लगी है
हाट का भी
जहाँ चलती
हर किसिम की ही ठगी है
 
शाह की
उस लाट का भी
जहाँ से ही लहू की धारा बही है
 
कथा उनकी
आँख में जिनकी भरा है
घुप अँधेरा
और उनकी भी
जो चुराकर ले गये
सबका सबेरा
 
उस बिचारी
धरा का भी
जो समय के सभी अनरथ सह रही है
 
ख़बर इसमें
रामजी के राज की
जो खो गया है
उस असुर की
झील में
चिनगारियाँ जो बो गया है
 
नेह के पुल
सभी टूटे
बंधु, युग की की सिर्फ़ सच्चाई यही है