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बस इतनी-सी रामकहानी / कुमार रवींद्र

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साधो ! अपनी
बस इतनी-सी रामकहानी
सुख ने साधा - दुख ने परखा
 
जनमे हम
आकाशकुसुम की खुशबू लेकर
धरती की माया व्यापी
हमने बाँचे
सुख-दुख के आखर
 
बरस-दर-बरस
झेले हमने
जाड़े-पतझर-आतप-बरखा
 
साँसों-साँसों बुना
मोह का ताना-बाना
नहीं किसी को मिला
खोजते रहे
हाट में वही खजाना
 
सिरजा हमने
सपनों का घर
चौखट-चौखट वह भी दरका
 
चादर कबिरा ने ओढ़ी
हमने भी ओढ़ी
बड़े जतन से उसको रक्खा
फिर भी मैली हुई निगोड़ी
 
हमने काता
धागा टूटा
यों ही चला उम्र का चरखा